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कुंभ मेला, वह अद्भुत और भव्य पर्व है जो हर 12 साल पर चार प्रमुख स्थलों पर आयोजित होता है, और इसे ‘अमृत कुंभ’ से जुड़ा हुआ माना जाता है। इस बार यह महापर्व प्रयागराज में आयोजित हो रहा है, जहां पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी का अद्वितीय दृश्य देखने को मिलेगा। प्रयागराज में हर साल एक महीने का माघ मेला आयोजित होता है, लेकिन हर छठे वर्ष अर्धकुंभ और बारहवें वर्ष पर कुंभ मेला का आयोजन होता है। आइए जानते हैं कुंभ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसका धार्मिक महत्व और 4 प्रमुख स्थानों का चयन क्यों किया गया।

क्या है कुंभ मेला का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व? 🔱

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Credit: lordkart

कुंभ मेला का आयोजन ‘अमृत कुंभ’ से जुड़ी पौराणिक कथा से प्रेरित है। यह कहानी हजारों साल पहले के देव और दानवों के संघर्ष पर आधारित है। समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, जिसे लेकर देव और दानवों के बीच भारी युद्ध हुआ था। इस युद्ध के दौरान अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिर गईं, और वही स्थान कुंभ मेला के चार प्रमुख स्थल बने – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक।

समुद्र मंथन से जुड़ी पौराणिक कथा और अमृत कुंभ 🌊

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Credit: tosshub.

समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा अमृत कुंभ आज भी हर धर्मिक व्यक्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को मिलकर समुद्र मंथन करने की सलाह दी थी। मंथन से 14 रत्न निकलकर सामने आए, जिनमें से अमृत को लेकर देवता और दानवों के बीच संघर्ष हुआ।

समुद्र मंथन से निकलने वाले रत्न :

  • हलाहल विष (भगवान शिव ने इसे अपने कंठ में धारण किया)
  • कामधेनु (सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली गाय)
  • उच्चैश्रवा घोड़ा (मन की गति से चलने वाला घोड़ा)
  • ऐरावत हाथी (देवराज इंद्र का हाथी)
  • कौस्तुभ मणि (भगवान विष्णु द्वारा धारण की गई मणि)
  • कल्पवृक्ष (स्वर्ग में लगाए गए वृक्ष)
  • अप्सरा रंभा (स्वर्ग में देवताओं के पास रखी अप्सरा)
  • देवी लक्ष्मी (भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी)
  • वारुणी देवी (मदिरा)
  • चंद्र (भगवान शिव के मस्तक पर धारण किया गया चंद्र)
  • पारिजात वृक्ष (थकान दूर करने वाला दिव्य वृक्ष)
  • पांचजन्य शंख (भगवान विष्णु का शंख)
  • धन्वंतरि (अमृत कलश के साथ प्रकट हुए भगवान धन्वंतरि)

अमृत की बूँदें और कुंभ मेला के 4 प्रमुख स्थान 🌍

कुंभ मेला के आयोजन स्थल उन स्थानों से जुड़ी हैं जहां समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूँदें गिरने का दावा किया जाता है। ये स्थान हैं:

  • प्रयागराज (गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी)
  • हरिद्वार (गंगा नदी के तट पर)
  • उज्जैन (क्षिप्रा नदी के तट पर)
  • नासिक (गोदावरी नदी के तट पर)

यह परंपरा अब हर 12 साल में एक बार इन चार स्थानों पर आयोजित होती है। कुंभ के इन स्थानों को ‘पवित्र स्थल’ माना जाता है, और यहां आकर लोग पवित्र स्नान करते हैं, ताकि उनके सभी पाप नष्ट हो जाएं और वे मोक्ष प्राप्त करें।

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Credit: dainiktribuneonline

कुंभ मेला की 12 सालों में अंतराल की रहस्यमय विशेषता 🕰️

कुंभ मेला का आयोजन 12 साल के अंतराल पर होता है, जो कि देव और दानवों के बीच संघर्ष के बाद के ‘मानवीय वर्ष’ से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अमृत की बूँदों के गिरने के बाद, इन स्थलों पर कुंभ मेला हर बार 12 साल में आयोजित होता है।

यह 12 साल का अंतराल एक धार्मिक चक्र के रूप में माना जाता है, जिससे हर व्यक्ति को जीवन में नए लक्ष्य प्राप्त करने और अपने पापों से मुक्ति पाने का अवसर मिलता है। कुंभ मेला के दौरान लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं, और इसका आयोजन एक तरह से समाज के शुद्धिकरण का अवसर बनता है।

कुंभ मेला और वेदों का संबंध 📜

ऋग्वेद और अथर्ववेद में कुंभ का उल्लेख किया गया है, जिसमें यह एक धार्मिक-सामाजिक उत्सव के रूप में सामने आता है। वेदों में इसे ‘समन’ के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते थे। इन वेदों में कुंभ की प्रार्थनाएँ हैं, जो इस बात का संकेत हैं कि यह पर्व सैकड़ों सालों से धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है।

कुंभ मेला और भक्तों के लिए विशेष अनुभव 🌟

कुंभ मेला न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहां हर साल हजारों कल्पवासी, साधु-संत और श्रद्धालु जुटते हैं। यहां पर अलग-अलग धार्मिक गतिविधियाँ, साधना, पूजा और भजन कीर्तन का आयोजन होता है। यही नहीं, यहां के मेलों और बाजारों में हर प्रकार की धार्मिक वस्तुएं, यंत्र, तंत्र, और आस्थाओं से जुड़ी सामग्री भी उपलब्ध होती है।

इस खास अवसर पर, एक यात्रा करना और कुंभ मेला के अद्भुत वातावरण में खुद को खो देना, एक अविस्मरणीय अनुभव होता है।

संक्षिप्त निष्कर्ष : कुंभ मेला की यात्रा पर क्यों जाएं? ✈️

कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि यह एक अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव भी है। यहां आपको न केवल धार्मिक आयोजनों का हिस्सा बनने का मौका मिलेगा, बल्कि आपको भारतीय सभ्यता और संस्कृति के गहरे पहलुओं से भी परिचित होने का अवसर मिलेगा।

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Disclaimer:

यह लेख धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी पौराणिक कथाओं और परंपराओं पर आधारित है, जो विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में भिन्न हो सकती है। कृपया ध्यान दें कि इस लेख में व्यक्त की गई कोई भी जानकारी व्यक्तिगत विचारों पर आधारित नहीं है और इसे केवल शैक्षिक उद्देश्य से ही पढ़ें। किसी भी धार्मिक आयोजन या यात्रा से संबंधित निर्णय लेने से पहले कृपया स्थानीय अधिकारियों और धर्मगुरुओं से मार्गदर्शन प्राप्त करें।

1 thought on “कुंभ मेला : देवों का अमृत कुंभ जागृत करने का महापर्व और इसकी ऐतिहासिक महत्ता 🌸”

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