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हर वर्ष वैशाख शुक्ल अष्टमी को मनाई जाने वाली देवी बगलामुखी जयंती न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है। देवी बगलामुखी को पीताम्बरा, स्तम्भिनी शक्ति, वाणी को रोकने वाली और ब्रह्मास्त्र रूपिणी जैसे नामों से जाना जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत दिव्य होता है—पीले वस्त्र, स्वर्ण के समान आभा और हाथ में गदा लिए हुए, राक्षस की जीभ पकड़े हुए उनका यह रूप शत्रुओं के संहार की प्रतीक शक्ति मानी जाती है।

🌪️ जब पृथ्वी संकट में थी: सतयुग की दिव्य कथा 📜

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पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग में जब एक भीषण तूफान से संपूर्ण सृष्टि नष्ट होने के कगार पर थी, तब भगवान विष्णु अत्यंत चिंतित होकर भगवान शिव के पास पहुँचे। उन्होंने इस विनाश से बचने का उपाय पूछा। तब शिव ने कहा कि इस संकट को केवल आदिशक्ति ही रोक सकती हैं। इसके बाद भगवान विष्णु ने कठोर तपस्या की और मां जगदंबा ने हरिद्रा सरोवर (सौराष्ट्र) से बगलामुखी के रूप में प्रकट होकर ब्रह्मांड को संकट से मुक्त किया। उनका यह स्वरूप स्तम्भन शक्ति से परिपूर्ण था, जो नकारात्मक ऊर्जा को रोकने की अद्वितीय क्षमता रखता है।

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📖 ब्रह्मा का ग्रंथ और राक्षस का संहार 😈

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एक अन्य कथा में उल्लेख मिलता है कि एक राक्षस ने ब्रह्माजी का अमर ज्ञान का ग्रंथ चुराकर पाताल लोक में छिपा लिया। इससे सम्पूर्ण ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ गया। तब आदिशक्ति ने बगुले का रूप धारण कर उस राक्षस की जीभ पकड़ ली और उसे स्तम्भित कर नष्ट कर दिया। देवी ने वह ग्रंथ ब्रह्माजी को लौटा दिया। तभी से वे रक्षसंहारिणी के नाम से भी पूजी जाने लगीं। उनका यह रूप हमें यह संदेश देता है कि देवी की शक्ति केवल शत्रु संहार तक सीमित नहीं है, बल्कि वे ज्ञान की संरक्षिका भी हैं।

🔺 ब्रह्मा से कृष्ण तक: साधकों की श्रृंखला 🧘‍♂️

देवी बगलामुखी की साधना की शुरुआत स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी। उन्होंने यह दिव्य विद्या सनकादि ऋषियों को प्रदान की, जिनसे यह ज्ञान नारद मुनि तक पहुँचा। नारद से यह शक्ति भगवान विष्णु को प्राप्त हुई, जिन्होंने इसे परशुराम को प्रदान किया। परशुराम ने इसे गुरु द्रोणाचार्य को दिया और अंततः यह विद्या भगवान श्रीकृष्ण तक पहुँची। महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों ने कृष्ण के निर्देश पर देवी बगलामुखी की साधना कर युद्ध में विजय प्राप्त की थी। इससे स्पष्ट है कि देवी की कृपा से युद्ध जैसे कठिनतम संघर्षों में भी सफलता प्राप्त होती है।

🌃 रात्रि की रहस्यमयी साधना: शक्ति प्राप्ति का मार्ग 🌟

बगलामुखी साधना सामान्य रूप से रात्रि में की जाती है और यह अत्यंत गोपनीय एवं शक्तिशाली मानी जाती है। साधना में देवी की मूर्ति या यंत्र के सामने पीले वस्त्र धारण कर पीले चंदन, पीले फूल, और हल्दी से पूजा की जाती है। उनका वाहन बगुला ध्यान की प्रतीक है, और उनके साथ के भैरव को महाकाल के नाम से जाना जाता है। देवी के दो हाथ हैं, जिनमें से एक में वे गदा धारण करती हैं और दूसरे से शत्रु की जीभ पकड़ती हैं। यह संकेत करता है कि वे वाणी, विचार और शक्ति को नियंत्रित करने वाली अधिष्ठात्री देवी हैं।

🔮 16 शक्तियों से युक्त हैं देवी बगलामुखी 🧿

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देवी बगलामुखी केवल एक शक्ति का नहीं, बल्कि सोलह शक्तियों (16 Shaktiyan) का समागम हैं। इन शक्तियों के नाम हैं: मङ्गला, वश्य, अचलया, मन्दरा, स्तम्भिनी, बलया, जृम्भिनी, मोहिनी, भाविका, धात्री, कालना, भ्रमिका, कल्पमाषा, कालाकर्षिणी, भोगस्था और मन्दगमना। इन शक्तियों के माध्यम से साधक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, स्थिरता और संतुलन प्राप्त कर सकता है। इनके नामों का जाप और ध्यान अत्यंत फलदायक माना जाता है।

🌼 पीले रंग का महत्व: पीताम्बरा का आध्यात्मिक संकेत 🟨

देवी बगलामुखी को पीताम्बरा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनका पूरा स्वरूप पीले रंग से आवृत रहता है। साधना में पीला रंग अत्यंत शुभ और अनिवार्य होता है। पीले वस्त्र, पीले फूल, हल्दी, चने की दाल, पीला चंदन, और पीतल के बर्तन आदि का उपयोग साधना में किया जाता है। साधना शुरू करने से पहले हरिद्रा गणपति की पूजा अवश्य की जाती है ताकि कोई विघ्न बाधा न आए। यह पूजा पूर्ण गोपनीयता और गुरु के मार्गदर्शन में की जानी चाहिए।

🛕 देवी बगलामुखी के प्रसिद्ध शक्तिपीठ और मंदिर 🗺️

भारत में देवी बगलामुखी के तीन अत्यंत प्रसिद्ध और सिद्ध मंदिर हैं जो साधकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। पहला मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया में स्थित है, जहाँ साधक हर अमावस्या को विशेष साधना के लिए एकत्र होते हैं। दूसरा शक्तिपीठ नलखेड़ा, जिला आगर मालवा, मध्यप्रदेश में है, और तीसरा अत्यंत प्राचीन मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। इन मंदिरों में वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है और जयंती के दिन विशेष उत्सव और रात्रि साधना आयोजित की जाती है।

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🙏 आत्म-नियंत्रण से शत्रु विजय तक: देवी की कृपा से जीवन में स्थिरता 💫

देवी बगलामुखी की साधना केवल शत्रुओं को स्तम्भित करने या विजय पाने के लिए नहीं होती, बल्कि इसका उद्देश्य आत्म-नियंत्रण, मन की स्थिरता, और वाणी की मर्यादा भी है। देवी हमें सिखाती हैं कि जीवन में न केवल बाहरी शत्रु बल्कि अंदर के दोषों पर भी विजय आवश्यक है। उनकी साधना से भय, भ्रम और मानसिक अस्थिरता समाप्त होती है और साधक आत्मिक रूप से अत्यंत शक्तिशाली बनता है।

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🔔 Disclaimer (अस्वीकरण):

यह लेख केवल धार्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक जानकारी को साझा करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी पुराणों, मान्यताओं और आध्यात्मिक ग्रंथों पर आधारित है। पाठक इसे आस्था और जानकारी के रूप में लें। किसी भी साधना, मंत्र या तांत्रिक प्रक्रिया को अपनाने से पहले योग्य और अनुभवी गुरु या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें। लेखक या प्रकाशक किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत आस्था या परामर्श का दावा नहीं करता है। 🙏📿

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